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boond boond lafz bandh rahe hai

boond boond lafz bandh rahe hai

5/11/08

बेनाम नzम

संजीदा से लम्हे और मिसरी सी यादें
आँसू सा कोहरा और तन्हाई सी वादी
छुप गयी रात वही...
चाँद के पीछे पीछे...

जुस्तजु किसी साये की..
बस एक ख्वाहिश ही रही...
भटकते है इस वादी में
मिसरी को लिए ...लम्हो को थामे
की अब कोई ख्वाहिश ना रही..
जो छुप गयी है रात..
चाँद के पीछे पीछे...

5/8/08

कुछ फ़ासले

कभी तुम कहा करती थी
आज हमें भी यू लगता है
फ़ासले अच्छे होते है


तब हमें ठेस लगती थी
आज तुम्हे दर्द होता है
यू फ़ासले जो बढ़ते है


तब सुईयाँ तेज़ भागती थी
अब घड़ी ही बंद रहती है
वक़्त के भी फ़ासले होते है


डोर कभी जो बँध रही थी
गाँठ वही अब खुल रही है
साँसों मे भी फ़ासले होते है


कल मेरी जो परच्छाई थी
आज वही लगती पराई है
रूह ने जिस्म से फ़ासले किए है