संजीदा से लम्हे और मिसरी सी यादें
आँसू सा कोहरा और तन्हाई सी वादी
छुप गयी रात वही...
चाँद के पीछे पीछे...
जुस्तजु किसी साये की..
बस एक ख्वाहिश ही रही...
भटकते है इस वादी में
मिसरी को लिए ...लम्हो को थामे
की अब कोई ख्वाहिश ना रही..
जो छुप गयी है रात..
चाँद के पीछे पीछे...