संजीदा से लम्हे और मिसरी सी यादें
आँसू सा कोहरा और तन्हाई सी वादी
छुप गयी रात वही...
चाँद के पीछे पीछे...
जुस्तजु किसी साये की..
बस एक ख्वाहिश ही रही...
भटकते है इस वादी में
मिसरी को लिए ...लम्हो को थामे
की अब कोई ख्वाहिश ना रही..
जो छुप गयी है रात..
चाँद के पीछे पीछे...
14 comments:
bahut uljhi hui kavita lagti hai....
shabdon ki bharmaar aur bhaavon ki kami...
मिसरी को लिए ...लम्हो को थामे
की अब कोई ख्वाहिश ना रही..
जो छुप गयी है रात..
चाँद के पीछे पीछे...
very nice !!
बेहद खूबसूरत नज्म ...पुरानी सई वापस आयी.... ऐसा लगा.....
khubsurat...'tanhai ki mehfil' wali baat hain... likhte rahiye...
bahut khoobsurat ....
संजीदा से लम्हे और मिसरी सी यादें
आँसू सा कोहरा और तन्हाई सी वादी
wah ! kya baat hai ! badhaayee.
Keep writing ...
khoobsoorat nazm hai.
by the way, are you from,PWC? naam aur chehra pahchana sa lagta hai.
ज़्यादा तो नही कह सकती पर आप के शब्द बून्दो की तरह मन को लगे और उनकी गेहरैयाँ बहुत मेहसूस होती हैं.
जुस्तजु किसी साये की..
बस एक ख्वाहिश ही रही...
भटकते है इस वादी में
मिसरी को लिए ...लम्हो को थामे
की अब कोई ख्वाहिश ना रही..
जो छुप गयी है रात..
चाँद के पीछे पीछे...
wah beta aap to hamesha kamaal karti ho
misri ko liye lamho ko thaame
kaaml
Wonderful!!
ye likhne ka style muje bahut pasand hey!!
bahut accha!!
बहुत उम्दा नज़्म है.
आज पहली बार आपके ब्लोग आया तो बूंदे से भीग गया। बहुत खूबसूरत लिखा है। शब्दों ने जादू सा कर दिया हैं।
संजीदा से लम्हे और मिसरी सी यादें
आँसू सा कोहरा और तन्हाई सी वादी
छुप गयी रात वही...
चाँद के पीछे पीछे...जुस्तजु किसी साये की..
भटकते है इस वादी में
मिसरी को लिए ...लम्हो को थामे
की अब कोई ख्वाहिश ना रही..
जो छुप गयी है रात..
चाँद के पीछे पीछे...
badhiya.....
b'ful :-)
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