साँसों को चलने की आदत हो चुकी है
हमसे जीने की आदत डाली नही जाती
कुछ दिन पहले एक दोस्त से बात हो रही थी. हम बात कर रहे थे वक़्त की कमी का. कैसे आजकल वक़्त कम पड़ता है हर चीज़ के लिए, फिर वो दोस्त हो , घर वाले हो या खुद के लिए ही सही बस वक़्त नही मिलता.मैने बात करते हुए पूछा क्या अपने २४ घंटो में से कुछ ४ घंटे उधार दोगे. वक़्त रहते लौटा दूँगी. उसने कहा बिल्कुल लो. ४ क्यू ६ घंटे ले लो. मैने माना करते हुए कहा मैं ६ घंटे लौटा नही पौउनगी. यह कोई मज़ाक नही हो रहा था. हम एक सीरीयस कॉन्वर्सेशन कर रहे थे. एक मशीन की तरह चलते रहते है इंसान है है हम कभी कभी याद दिलाना पड़ता है खुदको.यू कभी कभी कुछ लिख कर एहसास ज़िंदा रखते है.हमारे दोस्त टाइम मॅनेज्मेंट बखुबी करते है सो इस विषय पर उनसे बात करकरना मुश्किल हो जाता है. कैसे पुर व्यस्त दिन में वो दोस्तों से मिलना, लिखना, और शायरी भी बखुबी भी कर लेते है.उनसे प्रेरित हो हम भी टाइम मॅनेज्मेंट करने की सोचते है बस आज की कल पे टाल कल की परसो पर टालते है.बहुत थके होते हैं ना (दिल को खुश रखने को 'घालिब' यह ख़याल अच्छा है) कितना भी कह ले दलीले कर ले एक बात सच्ची है कही ना कही हम करना ही नही चाहते वक़्त को समेत कर उसके मालिक बने.वक़्त की क़ैद में ज़िंदगी रखते ही उसके मत्थे दोष मढ़ने की आज़ादी मिल जाते है.सो हमारे दोस्त को भी पता है और हमें भी पता है की हम जैसे है वैसे ही रहेंगे क्यूंकी हम बदलने की कोई मनसा ही नही रखते. क्यूंकी ऐसा कुछ हुआ तो ऐसे आर्टिकल लिखने को मिलेंगे कहा.सो कमसे कम अर्तिक्ले लिखने वास्ते ही सही अभी टाइम मनागेमेंट का प्लान ड्राप कर दिया गया है।