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boond boond lafz bandh rahe hai

boond boond lafz bandh rahe hai

4/10/08

एक छोटा सा वकिया

कुछ लिखे.....

पहला पोस्ट है...कुछ बढ़िया पोस्ट होना चाहिए यहा। यह सभी कहेंगे....पर क्या करें जब कुछ कहने को न हो और लिखना भी चाहते हो? सो मैंने सोचा..कल अस्पताल में आंखों देखा किस्सा ही यहा बयान कर देते है। हर इक्कीस दिनों में मई पेनिसिल्लिन इंजेक्शन लेने जाती ह नजदीकी अस्पताल में। एक छोटा सा नुर्सिंग होम है। अब थोड़ा लगाव भी हो गया है उस से (अस्पताल से भी भला लगाव हो सकता है गर आप सोचते हो...टू बता दु..मैं भी यही सोचती हूँ !) एक औरत बाछा डिलीवर कर ने आई थी। उसके घरवाले यानी पति, दो लड़कियां और उसकी साँस बाहर इंतज़ार कर रहे थे। बच्चे के रोने की आवाज़ आई..सब खुश हो गए। ख़ास कर वह लड़किया। मेरी बेहेन जो एक डॉक्टर है, उसके चेहरे पर कोई भाव नही थे.(मुझे बहुत खुशी हुई थी, पहली बार देखा नवजात शिशु को )। मैंने पूछा उस से ऐसा क्यों? उसने कहा..यह एक फोर्सद डिलिवरी है..सिर्फ़ लड़के के खातिर यह मैं बता सकती हूँ। मुझे लगा नही..ऐसा नही होगा..पर मेरा भ्रम टूटा जब साँस सबको बताने लगी कैसे १० साल कोशिश करने के बाद आख़िर उसकी इच्छा पूरी हुई! एक लड़का आया। अब वह अपने पोते के साथ खेलेगी!
मेरी बेहेन ने एक 'देखा मैं सच थी' वाली नज़र से देखा और हम..अपनी बुध्हुगिरी पर हँसकर..वह से निकल लिए...अभी मैंने ज़माने को शायद समझा नही!

2 comments:

कुश said...

बहुत ही भावपूर्ण वाकया हमारे बीच बाँटने के लिए धन्यवाद.. आपकी पहली पोस्ट की शुभकामनाए स्वीकार करे..

डॉ .अनुराग said...

जिंदगी रोज अपना एक नया चेहरा दिखाती है.......